रसियाजी क्या आए काॅलानी में हडकंप मच गया।
आवारा पशुओं को देखकर औरतें जैसे बच्चों को अंदर ले लेती हैं, रसियाजी को घूमते देख काॅलानी के मर्द एक विचित्र आशंका से भयभीत हो उठते। उस समय इनमें से किसी की बीवी यदि घर के दरवाजे पर अथवा इर्दगिर्द होती तो वे यही कहते जो अक्सर मैं वंदना को कहता, वहां क्या लड्डू रखे हैं ? बेबात बाहर क्यों खड़ी हो ? यह भी हो सकता है वे ठीक इन्हीं शब्दों का प्रयोग न कर कुण्ठा में अन्य शब्दों का प्रयोग करते हों जैसे मुझसे उकता गई हो जो इसे देखकर बाहर आ जाती हो अथवा फिर यह रोटी देता है जो इसके स्वागत में खड़ी हो अथवा ऐसा ही कुछ-कुछ जो इस बात पर निर्भर करता कि बीवी पर किसका कितना जोर चलता था। इन सबमें सबसे अच्छा, मन को सुकून से भरने वाला तो मुझे मेरे पड़ौसी आर्या का यह कहना लगता, ‘आंख मटक्का करना है जो वहां खड़ी हो ? भीतर आती हो या लगाऊं गाल पर दो चमाट। ’
यह सब स्टेटमेंट इवनिंग वाॅक में मर्द मिलते तब साझा होते। मैं आर्या के शौर्य की खुले मन से सराहना करता, मन ही मन सोचता इन लुगाइयों को यही कहना चाहिये, इससे कम पर यह मानने वाली नहीं। एक शूरवीर की तरह स्वयं को पूरा तैयार करता लेकिन घर पहुंचते फुस्स हो जाता। वंदना के तूणीर में दस तीर होते, “दूध लाए ? सब्जी का कहा था, कुछ याद रहता है ?’’ अथवा फिर धोबी, दर्जी, टीवी वाला वह कोई न कोई मेंढक मुझे देखते ही सर पर रख देती। मैं मन ही मन सोचता, काश! इसे आर्या जैसा पति मिला होता। चमाट खाकर गाल पर अंगुलियां देखती तब पता चलता पति किस बला का नाम है। एक पति को उसी की तरह कठोर, बदमिज़ाज होना चाहिए, औरतें ऐसे पतियों की पूजा करती हैं। पति जरा नरम हुआ, औरतें छाती पर नाचने लगती हैं। आर्या तो एक बार बता रहा था वह कई बार बिना कारण बीवी को चमाट धर देता है। मैंने कहा ऐसा क्यों करता है तो बोला , उसे डरी, सहमी हुई औरत अच्छी लगती है। तब मैं मन ही मन आर्या जैसा पति होने का स्वप्न देखता लेकिन इस हसीन स्वप्न में भी वंदना आंख दिखाने से बाज नहीं आती। मेरा स्वप्न तब ताश के पत्तों की तरह ढह जाता।
रसियाजी हमारी काॅलोनी में मात्र छः माह पूर्व आए पर फकत छः माह में उन्होंनें औरतों पर वह प्रभाव बना लिया जो हम विवाह के वर्षों बाद तक नहीं कर पाए। मुझे अनेक बार कोफ्त होती जिसे मैं अक्सर सांझ की गुफ़्तगू में निकालता, “ लोग इन छड़ों को मकान किराये पर देते क्यों हैं ? सरकार को गृहस्थियों के मोहल्लों में छड़ों का प्रवेश निषेध कर देना चाहिए। छुट्टे सांड घूमेंगे तो गायें कब तब हिफ़ाजत से रह सकेंगी ?’’ काॅलोनी के अन्य मर्द इस बात पर मुझे आंखें तरेर कर देखते, मुझे तब समझ आता मैं कहना क्या चाहता हूं एवं कह क्या देता हूं। तब आर्या जवाब देता “इसका मकान मालिक तापड़िया खुद चिरकुंवारा है, उसके लुगाई होती तो वह समझता ऐसे मर्दों से जोखिम क्या है।” मैं आर्या से सुर मिलाता, “ मुझे तो लगता है इस हरामी ने हमें चिढ़ाने के लिए मकान इस छड़े को किराये पर दिया है। इस बार होली पर सभी दारू पीकर तापड़िया की फ़जीती करेंगें। इसका मुंह कोलतार से पोतेंगें तब कुत्ते को अकल आएगी कि हर काॅलानी की एक मर्यादा होती है एवं मकान सोच-समझकर सही किरायेदार को देना चाहिए। जाके पांव न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।’’ तभी मेरे पास बैठा सुशील बोला, “मैंने सुना है आजकल दो मर्द भी संबंध बना लेते है। कहीं यह होमो तो नहीं ?’’ उसकी बात सुनकर हम सभी खिलखिलाकर हंस पड़े। रसियाजी जब से आए ऐसी ही बातें होती।
रसियाजी की उम्र लगभग मेरे करीब यानि पैंतालिस के आसपास होगी। एक ऐसी उम्र जिसमें मर्द बहुधा ढलने लगते हैं लेकिन रसियाजी आज भी तीखे-बांके लगते। आर्या एक बार बता रहा था कि वह नित्य बैडमिंटन खेलने जाता है, इसी के चलते जवान, चुस्त-दुरुस्त दिखता है। पानीदार आंखें एवं आत्म-विश्वास से भरी चाल उनके व्यक्तित्व में इज़ाफा करती। औसत से ऊपर कद था, टिंगू आर्या जब भी उनसे बात करता, मुंह ऊंचा करके करता। अंग्रेजी-हिन्दी दोनों में पारंगत थे, कम बोलते लेकिन जब भी बोलते उनकी वाणी का प्रभाव देखते बनता। यहीं किसी कम्पनी में जनरल मैनेजर था, काॅलोनी की सबसे अच्छी एवं महंगी गाड़ी भी उसी के पास थी। जहां हम सभी जोड़-तोड़कर पच्चीस हजार वेतन पाते, वंदना एक बार बता रही थी इनकी तनख्वाह लाख से ऊपर है। कहते-कहते उसने मेरी ओर ऐसे देखा मानो अपने दुर्भाग्य को कोस रही हो। आशंकित , मेरी छाती पर सांप लौट गए। मैंने पूछा, तुझे कैसे पता चला तो बोली, यह बात पड़ौस में रहने वाले सुशीलजी की वाईफ ज्योति ने उसे बताई है। मैंने बात आगे बढाई, उसे कैसे पता चला तो वंदना कुढ़ते हुए यह कह कर चली गई कि पूछकर बताऊंगी। जाते हुए उसकी आंखों का क्रोध स्पष्ट बता रहा था कि वह यह भी कहना चाहती है कि उसके पल्ले तो मुझ जैसा फकीर पड़ा था, महीना बीतते ही बगले झांकने वाला। मेरे लिए यह भी रहस्य था कि आखिर ज्योति को यह बात कैसे पता पड़ी एवं पता चली तो उसने सुशील को क्यों नहीं कही ? उसे पता होता तो वह बड़बोला कब का उगल देता। ओह, इन औरतों का सूचना तंत्र कितना प्रभावी होता है वरना एक मर्द को तो दूसरे की तनख्वाह तक जानने में वर्षों लग जाते हैं।
उनका नाम ‘रसियाजी’ क्यों पड़ा यह भी एक दिलचस्प वाकया है। एक बार वे शाम के समय गाड़ी में आफिस से आ रहे थे। गाड़ी उनका ड्राईवर चला रहा था, पीछे सीट पर उनके साथ कोई खूबसूरत महिला बैठी थी। हम वाॅक कर सुस्ता रहे थे। यकायक रसियाजी की गाड़ी हमसे थोड़ी दूर पर रुकी, वह महिला भी गाड़ी से उतरी एवं वहीं खड़े कुछ देर उनसे बतियाती रही, दोनों हंस-हंसकर बेतकल्लुफ बातें कर रहे थे, जहां हमें औरतों से बातें करने तक में शर्म आती, रसियाजी निःसंकोच बातें किये जा रहे थे वरन आत्म-विश्वास में वे महिला पर भारी पड़ रहे थे। जाते हुए महिला ने आगे बढ़कर उनसे हाथ मिलाया, रसियाजी ने उसके समीप आकर अंग्रेजों की तरह गर्दन से गर्दन मिलाई एवं बाॅय-बाॅय कह कर चल दिए। उस दिन हम फटी आंखों से उन्हें देख रहे थे।
यकायक उन्होंने हम सब की ओर देखा तो मुड़कर हमारी ओर चले आए। उनके समीप आते ही हम खड़े हो गए, हीन भावना से पहले से ग्रस्त थे, उन्हें देखते ही बोले, गुडइवनिंग सर! मुझे मेरे हमवय व्यक्ति को सर कहना अखरा , पर विनम्रता की औलाद शर्मा पहले ही सर बोल पड़ा तो सुशील, आर्या एवं वहां बैठे अन्य सभी को सर कहना पड़ा।
“गुडइवनिंग! आप सभी कैसे हैं ? ’’ रसियाजी वहीं खडे़-खडे़ बोले। उनके पोर-पोर से आत्म-विश्वास टपक रहा था।
“ अच्छे हैं सर! ’’ इस बार सुशील इस तरह बोला मानो वह धरती पर नहीं कुएं में खड़ा हो।
“ मैं ऑफिस से आकर नित्य खेलने चला जाता हूं , अतः आपसे मिलना नहीं हो पाया। आप कभी घर आएं, परिवार , बच्चों को भी साथ लाएं। मैं अकेला रहता हूं अतः मुझे लोगों से मिलना बहुत भाता है। आज जरा जल्दी में हूं , चलता हूं। ओके।’’ जाते हुए भी उनकी चाल, आंखों की चमक देखने लायक थी।
उनके जाते ही हमें मुद्दा मिल गया। हमने पीछे बैठी औरत के बारे में अगड़म-बगड़म हजार बातें की। आर्या ने तो यहां तक कहा कि यह इसकी रखैल हो सकती है तो बाकी सभी चौंक गये। औरत हसीन थी वह जवांमर्द एवं जिस तरह वह गले मिल रहा था उससे हमारे जैसे अल्पबुद्धियों का आशंकित होना स्वाभाविक था। जाने कैसे उस दिन मेरे मुंह से निकल गया, “हरामी रसिया लगता है। ’’ उस दिन सभी खुलकर हंसे एवं तबसे ही उसका नाम ‘ रसियाजी ’ पड़ गया हालांकि उस दिन मैं घर आया तो वंदना ने बात करते हुए बताया कि यह लड़की उनकी सेकेट्री है। मैं फिर आशंकित हुआ, बात न बढे़ इसलिए इस बार यह पूछना टाल गया , तुझे कैसे पता चला।
रसियाजी का असल नाम गौरव सक्सेना है एवं नाम के अनुरूप स्वाभिमान एवं गौरवभाव उनके अंग-अंग से टपकता है। हर समय चुस्त दिखते हैं। काॅलोनी का गार्डन वर्षों से खराब था, उन्होंने पहली बार यहां रहने वालों की बैठक बुलाई, सबको ऐसे उत्साहित किया कि गार्डन चंद दिनों में दुरुस्त हो गया। उनका पहला वक्तव्य ही ऐसा दमदार था मानो किसी जादूगर ने सम्मोहन किया हो। इस कार्य में उन्होंने स्त्रियों, बच्चों तक को हाथ बंटाने का आह्वान किया, फिर क्या था कोई गार्डन साफ कर रहा है, कोई जंगली घास उखाड़ रहा है , कोई पत्थर इकट्ठे कर बाहर डाल रहा है, कोई पौधे लाकर लगा रहा है, किसी ने खाद-बीज का इंतजाम किया , किसी ने क्या एवं गार्डन चंद महीनों में महकने लगा। काॅलोनी में एक टूटा मंदिर था, वह भी उन्होंने जन-सहयोग एवं दानदाताओं से मिलकर ठीक करवा दिया। बिजली के खम्भों से पुराने तार लटकते रहते थे, आंधी-बरसात में बिजली अक्सर नदारद होती । रसियाजी ने विभाग से सम्पर्क कर नई लाइन लगा दी। काॅलोनी में पानी की छोटी लाइन थी , पानी धीरे-धीरे ऐसे आता जैसे गरीब की तिजोरी में धन इकट्ठा होता है। रसियाजी ने यहां भी कमाल कर दिखाया। सरकारी इंजिनियर्स से मिलकर बड़ी लाइन लगवा दी। यह तो कमाल हो गया। उस दिन काॅलोनी में घूमते हुए रसियाजी घर के आगे से निकले तो वंदना चीख पड़ी, “गौरवजी अब तो पानी इतना तेज आता है कि छानने का कपड़ा फट जाता है।’’ उसकी खुशी देखने लायक थी।
“इसकी तो पार्टी बनती है, वंदनाजी! ‘’ रसियाजी मुस्कुराकर बोले।
“वह भी मिलेगी। सच में हम सभी को आपका अभिनन्दन करना चाहिए पर फिलवक्त आप मेरे खास अनुरोध पर ब्रेकफास्ट लेकर जाएं। मैं उपमा बहुत अच्छी बनाती हूं।’’ वन्दना उससे ऐसे आग्रह कर रही थी मानोे घर के बाहर देवता खड़ा हो।
मैं कुढ़कर रह गया। एक तो मैं उसे निमंत्रण देना जोखिम समझता था दूसरा इतनी देर, बेझिझक, उसका मात्र वंदना से बात करना मुझे जरा नहीं सुहाया। लेकिन अब कर क्या सकता था। मैंने भी मुस्कुराकर उनका अभिवादन किया एवं उन्हें चुप भीतर लेकर आया। इस छोटे से रास्ते में आशंकाओं के असंख्य बादल मेरे विचार-व्योम पर तैर गए।
हम सभी डाईनिंग टेबल के आगे बैठे थे, “ ओह , आप कितनी स्वादिष्ट उपमा बनाती हैं। वर्षों बाद ऐसा स्वाद मिला। ’’ रसियाजी ब्रेकफास्ट करते हुए बोले।
“चलिए! आपको स्वादिष्ट लगा, यह जानकर अच्छा लगा।’’ मैं बीच में बात काटकर बोला।
तभी बबलू मेरे पास आकर बोला , “पापा! क्या मेरा एडमिशन हो गया ? मैं स्कूल कब जाऊंगा ?’’
“अरे! आपका अब तक एडमिशन नहीं हुआ ?’’ रसियाजी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
“इण्डियन पब्लिक स्कूल में बात चल रही है। दो बार होकर भी आए हैं पर परिणाम कुछ भी नहीं। आजकल बच्चों का एडमिशन कितना कठिन हो गया है। ऊपर से यह ठहरे भोलेनाथ।’’ वंदना ने रसियाजी को कहते हुए अपनी खीझ निकाली।
“अरे, उस स्कूल के प्रिंसिपल मि. शारदा मेरे मित्र है, मैं बात करूंगा।’’ नेकी और पूछ-पूछ। रसियाजी के उत्तर से वंदना आश्वस्त हुई। यह मेरे एवं वंदना की कोहनी पर गुड़ लगाने वाली बात थी। वंदना इस काम को लेकर रसियाजी के पीछे पड़ गई । आश्चर्य! उनके प्रयासों से बबलू का एडमिशन भी हो गया। अब तो अपने छोटे-मोटे अटके कई काम में वंदना उनसे सहयोग लेने लगी। मेरे हाउसिंग लोन की एन्क्वायरी एवं अन्य कई कार्यों में वंदना के अनुरोध पर रसियाजी ने जी भरकर सहयोग किया। मेरा एवं वंदना का ही नहीं काॅलोनी की अन्य महिलाओं के कार्यों में वह जब-तब हाथ बंटाता। औरतें भी रपट कर सहयोग लेती। हद तो तब हुई जब औरतें बच्चों के हाथ उनके घर स्पशेल डिशेज पहुंचाने लगी। मिसेज आर्या तो अनेक बार खुद उनके यहां डिशेज पहुंचा कर आती। यह सब वह तब करती जब आर्या ऑफिस में होता। यह परम रहस्य वंदना ने मुझे गोपनीयता की कसम दिलाकर बताया।
इतना हम सबसे कहां सहन होता। सांझ हम रसियाजी की जी भर बुराई करते। हमने हमारे व्यवहार, ड्रेस , औरतों को दी जाने वाली हाथखर्ची आदि आदतों में सुधार भी किया इसके बावजूद सब पर रसियाजी का नशा सवार था। जगत में चाम नहीं काम प्यारा है। अनेक बार हमें क्रोध भी आता कि यह औरतें आखिर बनी किस मिट्टी की हैं, खाती खसम का है गीत रसियाजी के गाती है। हम जानते हुए भी ज़ब्त कर जाते। इन औरतों का क्या। जिद चढ़ जाये तो जाकर रसियाजी को कह दें ये आपसे जलते हैं।
एक रात मैंने वंदना से पूछा, “आखिर रसियाजी में ऐसा क्या है कि औरतें इन्हें आंखों पर बिठाती हैं ?’’ मैं जला भुना था, दम लगाकर पूछ ही लिया।
“आप कितने शक्की हैं। उनकी तरह सहयोग , साहचर्य एवं मित्रभाव से भरने की बजाय उनसे जलते हो। छीः अपनी हीनता दूर करने की बजाय उन्हें कोसते हो । ’’ वह एक सांस में इस तरह उगल गई जैसे उसे पहले से पता था कि मैं एक दिन रोऊंगा एवं वह मुझे यह जवाब देगी। मैं अपना-सा मुंह लेकर रह गया।
दिन यूं ही बीतने लगे। रसियाजी के बढते प्रभाव से हम सभी खिन्न थे। सभी मनौती करते जितना जल्दी काॅलोनी से निकले अच्छा है। हरामी ने औरतों को सर चढा दिया। हमारे पास कोई तोड़ भी नहीं था। संकड़ी गली में सांड आ गया। आर्या तो एक बार यहां तक बोला , पहले अंगूठे पर रहती थी, आटे की आया थी, जब से रसियाजी आए हैं , स्त्री अधिकारों तक की बातें करने लगी है। अभी कुछ दिन पहले स्त्री-प्रताड़ना कानूनों तक के बारे में बता रही थी। मुझे तो लगता है यह रसिया ही इसे भड़का रहा है। मैंने कुढ़कर कहा यह भड़वा मर क्यों नहीं जाता, तभी शर्मा बीच में बोला “ तू चुप कर! तेरी जुबान काली है।’’
इस बात को भी अरसा बीत गया।
आज शाम वाॅक के बाद हम सभी बैठे थे तभी पुलिस की एक जीप काॅलोनी में आई। जीप हमसे थोड़ी दूर रुकी। उसमें से एक बंधी गठरी लेकर चार पुलिस वाले उतरे। उनके पीछे इंस्पेक्टर था , वह आगे बढ़कर बोला , “ बहुत बुरी खबर है। आपकी काॅलोनी से एक फर्लांग पहले इसी काॅलोनी के गौरव सक्सेना का दुर्घटना में निधन हो गया । ऑफिस से लौट रहे थे, आज ड्राइवर अवकाश पर होने से कार स्वयं चला रहे थे। वे गाड़ी में अकेले थे। उनकी कार सामने तेजी से आ रहे एक ट्रक से टकरा गई। सूचना मिलते ही हम आनन-फानन अस्पताल ले गए। डाक्टरों ने देखकर इन्हें मृत घोषित कर दिया। इनकी बाॅडी पोस्टमार्टम रूम में रखी है। घटना-स्थल का हमने पंचनामा बना दिया है, बस, कपड़ो की पहचान कर पंचनामे पर दस्तखत होने हैं। इस गठरी में उनके कपड़े हैं जिसे आपको पहचानना होगा। ’’
“रसियाजी मर गये ? ’’ मैं लगभग चीखा फिर झेंप मिटाते हुए इंस्पेक्टर की ओर देखकर बोला, “हम उन्हें प्यार से रसियाजी कहते थे। ’’
उस दिन मिसेज आर्या भी आर्या के साथ वाॅक कर हमारे साथ बैठी थी। उसने तुरत अन्य औरतों को फोन किया। क्षणभर में वंदना , मिसेज शर्मा, मिसेज सुशील एवं काॅलानी की अन्य औरतें तथा बच्चे वहां आ गए। काॅलोनी में सन्नाटा छा गया।
सन्नाटा चीरते हुए इंस्पेक्टर ने पुनः निवेदन किया, आपको कपड़े तो पहचानने होंगे। तभी सभी औरतें विशेषतः मिसेज आर्या तेजी से चलकर वहां आई। रसियाजी की मृत्यु की खबर सुनकर सबके चेहरे लटक गए ।
इंस्पेक्टर ने सबसे पहले पतलून निकाला। सभी चुप खड़े थे। अब कपड़ों का किसे क्या पता ? तभी मानो बिजली कौंधी। अधीर , बौखलाई मिसेज आर्या इंस्पेक्टर के समीप आकर बोली, “हां, यह उन्हीं की पतलून है। उनकी पतलून का साइज 38 (इंच) है। उन्हें काले रंग का एडमिन कम्पनी का पतलून बहुत पसंद था। यह उन्हीं का है। ’’ मिसेज आर्या बोलते हुए जरा नहीं अटकी।
इंस्पेक्टर ने स्टिकर देखकर कहा, “ आपने ठीक पहचाना। यह 38 साइज का एडमिन कम्पनी का ही पतलून है।’’
आर्या ने हम सब की ओर देखा एवं आंखें नीची कर ली।
इंस्पेक्टर ने अब कमीज बाहर निकाला , सफेद कमीज खून से सना था, दुर्घटना के कारण यहां-वहां से फट भी गया था।
“यह भी गौरवजी का ही कमीज है। वे अधिकतर ब्लिस कंपनी का व्हाइट शर्ट पहनते थे। आप देखिए ! उनका साइज एक्सेल है। “ मिसेज आर्या में इतना साहस जाने कहां से आ गया।
“आपने सही फरमाया। यह उसी कम्पनी का एक्सेल साइज कमीज है।’’ कहते हुए उसने चश्मा नीचे कर मिसेज आर्या की ओर देखा। उसकी उठी हुई पुतलियां मानो किसी रहस्य में सेंध लगा रही थी।
अब उसने बनियान निकाला।
“यह आधी बाहों वाला बनियान भी उन्हीं का है। वे कमीज के नीचे यही पहनते थे। इसे पहनकर बेडमिंटन भी खेलते थे। उनका साइज 36 एवं ब्रांड सेंडो था। यह उनका फेवरेट ब्रांड था।’’ मिसेज आर्या की पीड़ा , अधीरता एवं अकुलाहट देखते बनती थी।
इंस्पेक्टर ने बनियान के ऊपर की ओर देख हां के अंदाज में चेहरा ऊपर से नीचे की ओर हिलाया।
अब इंस्पेक्टर ने सकुचाते हुए आखिरी कपड़ा पहचान के लिए निकाला।
“यह भी उन्हीं का अंडरवियर है। उन्हें क्लासिक कंपनी के वीशेप अंडरवियर बहुत पसंद थे। आप देखिये, उनका साइज 38 होगा। ’’ मिसेज आर्या बेझिझक कहे जा रही थी।
“हां, यह 38 साइज का क्लासिक अंडरवियर है।’’ इंस्पेक्टर ने देखकर पुष्टि की एवं पंचनामा मिसेज आर्या की ओर दस्तखत के लिए बढ़ाया। बेहिचक, बिना किसी की ओर देखे मिसेज आर्या ने उस पर दस्तखत कर दिए। इसके बाद जाने उसे क्या हुआ, वह वहीं घुटनों के बल बैठ गई एवं फूट-फूट कर रोने लगी। अन्य औरतें चुपचाप उसके समीप आई एवं कंधे पर हाथ रख उसे ढाढस देने लगी।
अब कहने-सुनने-समझने को क्या बचा था ?
आर्या पास ही खड़ा था। उसे काठ मार गया। काटो तो खून नहीं। बीवी ने मानो स्वयं उसके पंचनामे पर दस्तखत कर उसी के मुंह पर चस्पा कर दिया था। चमाट मार कर तो उसने अनेक बार बीवी के गाल लाल किए लेकिन आज उसका चेहरा, बिना चमाट खाए, तांबे के तपते बर्तन की तरह लाल हो रहा था।
सांझ गहराने लगी थी।
पेड़ो पर बैठे पक्षी यकायक इस तरह चुप हो गए जैसे कोई उन्हें गवाही के लिए न बुलाले।
दूर लाल हुआ सूरज अस्ताचल में डूब रहा था।
इंस्पेक्टर ने कपड़े गठरी में बांधे एवं अन्य पुलिस वालों के साथ जीप में बैठकर चला गया।
दिनांक: 28/03/2018
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